आजकल के दौर में जहाँ हर कोई व्यक्ति नई तकनीक पर निर्भर होकर अपना काम बहुत आसानी से कर लेता है तो वहीं इस आधुनिक तकनीक ने स्कैमर्स का काम भी आसान कर दिया है। अब वह धोखाधड़ी और निजी डिटेल्स निकालने के लिए न सिर्फ कॉल या SMS का इस्तेमाल करता है बल्कि AI की मदद से आपकी आवाज़ का क्लोन बनाकर भी ठगी करता है।
विशिंग एक प्रकार का वॉयस फिशिंग होता है जिसमें अपराधी फोन कॉल, वॉयस क्लोनिंग के ज़रिए आपकी निजी जानकारी निकालता है और उसका इस्तेमाल आपके पैसे या पहचान चुराने के लिए करता है। यह स्कैमर्स आपको कॉल करके अपनी पहचान छिपाते हैं और संस्थाओं का हवाला देकर आपकी जानकारी माँगते हैं। जैसे: OTP, पासवर्ड आदि।
इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि विशिंग क्या है, यह कैसे काम करता है, और इससे बचने के कारगर उपाय क्या हैं।
विशिंग (Vishing), यानी वॉयस फिशिंग, साइबर सुरक्षा की स्थिति में तेजी से बढ़ता हुआ खतरा है। पारंपरिक फिशिंग हमलों में जहाँ ईमेल का उपयोग किया जाता है, वहीं विशिंग में साइबर अपराधी फोन कॉल के जरिए लोगों को धोखा देकर उनके बैंक अकाउंट डिटेल्स, सोशल सिक्योरिटी नंबर और पिन जैसी संवेदनशील जानकारियाँ हासिल कर लेते हैं।
अपराधी फोन पर भावनात्मक दबाव, झूठे दावे और उन्नत तकनीकों का इस्तेमाल कर बहुत भरोसेमंद लगने लगते हैं। इसी कारण विशिंग के शिकार होने का खतरा तेजी से बढ़ रहा है।
CrowdStrike की 2025 ग्लोबल थ्रेट रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की पहली छमाही से दूसरी छमाही के बीच विशिंग हमलों में 442% की चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज की गई है।
IVR सिस्टम्स, AI जेनरेटेड वॉयस और अन्य तकनीकों ने विशिंग हमलों को अधिक परिष्कृत और पहचानना मुश्किल बना दिया है।
और जाने: फिशिंग क्या है?
1. फ़ोन कॉल: विशिंग में स्कैमर्स खुद को सरकारी अधिकारी, बैंक एजेंट या अन्य संस्थाओं का प्रतिनिधि बताकर कॉल करते हैं और आपकी निजी जानकारी निकलवाने की कोशिश करते हैं।
2. बहलाने की कोशिश: कॉल करने के बाद स्कैमर्स आपको ड़राने या लालच देकर बहलाने की कोशिश करता है।
3. जानकारी निकलवाना: अपनी बातों में बहलाने के बाद स्कैमर आपसे जानकारी निकलवाना शुरू कर देता है।
जैसे- OTP, पासवर्ड, कार्ड नंबर, आधार नंबर आदि।
4. जुर्म करना: जैसे ही सारी जानकारी मिल जाती है वह आपके खाते से पैसे निकाल लेता है।
और जाने: साइबर सुरक्षा क्या है?
विशिंग एक सोशल इंजीनियरिंग हमला है जिसमें अपराधी बैंक, सरकारी एजेंसियों या टेक सपोर्ट जैसी विश्वसनीय संस्थाओं का प्रतिनिधित्व करने का नाटक करते हैं। उनका उद्देश्य होता है, धोखे से गोपनीय जानकारी प्राप्त करना, जिसका इस्तेमाल वित्तीय चोरी या पहचान की चोरी के लिए किया जाता है। बढ़ते दौर के साथ कई ऐसी तकनीक आई जिनसे स्कैमर्स के लिए धोखाधड़ी करना और भी आसान हो गया। उनमें से कुछ तकनीक हैं:
IVR (Interactive Voice Response) सिस्टम्स को अपराधी अब धोखाधड़ी के लिए उपयोग कर रहे हैं। ये ऑटोमेटेड फोन सिस्टम कंपनियों द्वारा कॉल हैंडलिंग के लिए बनाए जाते हैं, लेकिन अपराधी नकली IVR सिस्टम बनाकर लोगों से संवेदनशील जानकारी जैसे क्रेडिट कार्ड नंबर, बैंक डिटेल्स आदि भरवा लेते हैं।
AI आधारित वॉयस क्लोनिंग टेक्नोलॉजी ने विशिंग हमलों को और खतरनाक बना दिया है। AI टूल्स (जैसे Respeecher, VALL-E) की मदद से अपराधी किसी की आवाज को हूबहू कॉपी कर सकते हैं, जिससे स्कैमर्स को पीड़ित का विश्वास जीतना और आसान हो जाता है।
AI वॉयस जेनरेटर की मदद से स्कैमर किसी हस्ती, अधिकारी या आम व्यक्ति की आवाज़ का क्लोन बना लेता है जिसे पीड़ित पहचान नहीं पाता और विश्वास कर लेता है ऐसे में स्कैमर के लिए ठगी करना और भी आसान हो जाता है।
कॉलर ID Spoofing में अपराधी फोन नंबर को इस तरह बदल देते हैं कि कॉल किसी विश्वसनीय स्रोत (जैसे बैंक) से आती हुई प्रतीत होती है। इससे लोग फोन उठाने और बातचीत करने में कोई संकोच नहीं करते, जिससे स्कैमर्स को ठगी करने का मौका मिल जाता है।
इसमें स्कैमर Voice Over Internet Protocol (VoIP) जैसी तकनीक का इस्तेमाल करके कॉलर ID को बैंक, सरकारी एजेंसी या स्थानीय नंबर जैसा दिखाता है। कइ बार तो कॉलर आइडी पर खुद का नंबर भी दिख जाता है।
अगर ऐसे नंबरों से आपके पास कॉल आए और वह आपके ऊपर निजी जानकारी साझा करने के लिए दबाव बनाए तो तुरंत कॉल को काट दें और कोई भी जानकारी न दें।
रोबोकॉल एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कंप्यूटर सिस्टम के द्वारा लोगों को कॉल की जाती है जिसमें पहले से रिकॉर्ड किए गए संदेश होते हैं। आमतौर पर ये कॉल टेलीमार्केटिंग, राजनीतिक अभियानों के लिए की जाती हैं। लेकिन स्कैमर्स इसका इस्तेमाल धोखाधड़ी और ठगी के लिए करते हैं। ऐसी कॉल का इस्तेमाल स्कैमर्स आपकी निजी जानकारी हासिल करने या पैसे चुराने के लिए करते हैं।
रोबोकॉल में कंप्यूटर कॉलिंग के ज़रिए हज़ारों लोगों को एक साथ कॉल की जाती है। स्कैमर्स इसमें ऐसी रिकॉर्डिंग करते हैं जिसमें “आपका खाता बंद होने वाला है” या आप इनाम जीतने वाले हैं” जैसे संदेश होते हैं।
IVR के जरिए डेटा चोरी का तरीका:
1. व्यक्तिगत सूचना की हानि: विशिंग में स्कैमर आपकी सारी निजी जानकारी हासिल करके उसका गलत इस्तेमाल किसी अपराध को अंजाम देने या धोखाधडी करने का लिए कर सकता है जिससे कई बार आपको कानूनी कार्यवाई का सामना करना पड़ता है।
2. आर्थिक जोखिम: इसमें स्कैमर्स आपका OTP, कार्ड डिटेल्स को हासिल करके आपके खाते से पैसे चुरा लेते हैं जिससे आप बड़े आर्थिक नुकसान का सामना कर सकते हैं।
3. संस्थाओं के नाम का इस्तेमाल: स्कैमर्स संस्थाओं के नाम का इस्तेमाल ठगी और धोखाधड़ी जैसे कामों के लिए करते हैं जिससे अगर किसी व्यक्ति के साथ धोखाधड़ी होती है तो उनका सही संस्थाओं पर भी भरोसा करना मुश्किल हो जाता है।
और जाने: स्मिशिंग क्या है?
अगर आप Vishing का शिकार हो जाते हैं तो घबराएँ नहीं और तुरंत एक्शन लें जैसे:
1. फोन नंबर को रिपोर्ट करें- कॉल आने वाले नंबर को तुरंत कॉल ब्लौकिंग एप्स में रिपोर्ट करें ताकि इनसे और लोग सावधान रहें।
2. बैंक और अन्य संस्थाओं को सूचित करें- अपने बैंक को तुरंत घटना के बारे में सूचना दें ताकि वह आपका अकाउंट ब्लॉक कर दें और तुरंत कार्यवाई कर सकें।
3. अपनी निजी जानकारी बदलें- अगर आपकी कोई भी जानकारी स्कैमर तक पहुँच गई है तो उसे तुरंत बदलें।
जैसे- OTP, पासवर्ड या पिन आदि।
4. साइबर क्राइम सेल में शिकायत करें- Vishing का शिकार होने पर निजी पुलिस स्टेशन में FIR करें। या फिर cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज करें।
ऐसे एप्स जो इनकमिंग कॉल्स की पहचान सत्यापित करते हैं और संदिग्ध नंबरों को ब्लॉक करते हैं। ये ऐप्स धोखाधड़ी के पैटर्न और स्कैम नंबर डेटाबेस के आधार पर कॉल को फ़िल्टर कर सकते हैं।
MFA एक अतिरिक्त सुरक्षा परत जोड़ता है। इससे यदि विशिंग के जरिए लॉगिन डिटेल्स चोरी भी हो जाएँ, तो अकाउंट को एक्सेस करना मुश्किल हो जाता है।
AI टूल्स वॉयस पैटर्न, कॉल मेटाडेटा और अन्य संकेतों को जाँच परखकर यह पहचान सकते हैं कि कॉल असली है या नकली। कंपनियाँ इन टूल्स का उपयोग करके विशिंग कॉल्स को रोक सकती हैं।
कर्मचारियों को विशिंग हमलों की पहचान करने और सतर्क रहने का प्रशिक्षण देना बेहद प्रभावी उपाय है। उन्हें सिखाया जाना चाहिए कि बिना पुष्टि के फोन पर संवेदनशील जानकारी साझा न करें।
स्पैम और विशिंग कॉल्स से बचने के लिए ये ऐप्स कॉल पहचान और ब्लॉकिंग में मदद करते हैं।
ऐप का नाम | मुख्य विशेषताएँ |
---|---|
Truecaller | कॉलर ID पहचान, स्पैम कॉल ब्लॉकिंग, कॉल रिकॉर्डिंग |
Eyezy | कॉल हिस्ट्री ट्रैकिंग, रियल-टाइम अपडेट, मीडिया मॉनिटरिंग |
AI आधारित हमलों से सिस्टम की सुरक्षा के लिए ये एंटी-वायरस टूल्स बेहद जरूरी हैं।
सॉफ़्टवेयर का नाम | मुख्य विशेषताएँ |
---|---|
Bitdefender Antivirus Plus | रीयल-टाइम डेटा सुरक्षा, वेब अटैक से बचाव |
McAfee Antivirus | मल्टी-डिवाइस सुरक्षा, फ़ायरवॉल, पहचान सुरक्षा |
Norton 360 | डिवाइस सिक्योरिटी, VPN, पासवर्ड मैनेजर और क्लाउड बैकअप |
Kaspersky Internet Security | फिशिंग प्रोटेक्शन, पेमेंट सिक्योरिटी, ब्राउजर सिक्योरिटी |
Avast Antivirus | रीयल-टाइम प्रोटेक्शन, वायरस स्कैनिंग, ईमेल शील्ड |
Quick Heal Total Security | स्पैम प्रोटेक्शन, ब्राउजर सैंडबॉक्सिंग, पैरेंटल कंट्रोल |
ESET NOD32 Antivirus | मल्टी लेयर प्रोटेक्शन, रैंसमवेयर डिफेंस, लो-इम्पैक्ट परफॉर्मेंस |
निष्कर्ष
तकनीक जितनी उन्नत हो रही है, साइबर अपराधी उतने ही चालाक होते जा रहे हैं। विशिंग अब केवल साधारण फोन कॉल स्कैम नहीं रह गया है, बल्कि IVR सिस्टम्स, AI वॉयस क्लोनिंग और कॉलर ID Spoofing जैसी तकनीकों से लैस एक गंभीर खतरा बन चुका है।
हालाँकि, मजबूत साइबर सुरक्षा उपाय, जैसे MFA, AI डिटेक्शन, कॉलर वेरिफिकेशन और कर्मचारी जागरूकता से इन हमलों से बचाव संभव है। डिजिटल युग में सतर्क रहना ही सबसे बड़ा हथियार है।
याद रखें: फोन के दूसरी तरफ की आवाज पर तब तक विश्वास न करें जब तक आप उसकी प्रामाणिकता से पूरी तरह आश्वस्त न हों।
फ़िशिंग में स्कैमर्स द्वारा ऐसे ईमेल और वेबसाइट बनाए जाते हैं जिनसे आपका डाटा और निजी जानकारी चुराई जा सके। विशिंग ऐसे कॉल या वॉयस मैसेज होते हैं जिनसे स्कैमर्स किसी व्यक्ति की संवेदनशील जानकारी निकलवाने की कोशिश करते हैं।
अगर आपको विशिंग कॉल आते हैं तो उस कॉल को तुरंत काट दें। और राष्ट्रीय साइबर अपराध पोर्टल पर शिकायत दर्ज करें।
व्हाट्सएप विशिंग साइबर ठगी का ऐसा प्रकार है जिसमें स्कैमर्स व्हाट्सएप कॉल के ज़रिए आपकी निजी जानकारी निकालने की कोशिश करते हैं।
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